लड़की के इंकार करने पर मिया ग़ालिब ने एक मासूम सी ग़ज़ल कुछ इस तरह पेश की.…
यूँ हमको सताने की ज़रूरत क्या थी,
और गांड मेरी जलाने की ज़रूरत क्या थी,
जो नहीं था इश्क मुझसे तो कह दिया होता,
अपनी माँ चुदाने की ज़रूरत क्या थी,
मालूम था अगर ये खुवाब टूट जायेगा,
तो नींद में आ के चूत दिखाने की ज़रूरत क्या थी,
मान भी लूं अगर ये एक तरफ़ा मोहब्बत थी,
तो मुझे देख कर बहिन की लौड़ी मुस्कुराने की जरुरत क्या थी.. .
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मिर्ज़ा ग़ालिब गरीबी से तंग आकर डाकू बन गए और डकैती करने एक बैंक गए और कहा, " अर्ज़ किया है"।
तक़दीर में जो है वही मिलेगा;
हैंड्स-अप मादरचोदों कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा!
फिर कैशियर से कहा:
कुछ ख्वाब मेरी आँखों से निकाल दे;
जो कुछ भी है भोंसड़ी के, जल्दी से इस बैग में डाल दे!
बहुत कोशिश करता हूँ उसकी याद भुलाने की;
तुम्हारी माँ का भोंसडा, कोई कोशिश न करना पुलिस बुलाने की!
भुला दे मुझको क्या जाता है तेरा;
मैं माँ चोद दूंगा उसकी, जो किसी ने पीछा किया मेरा।😜👌👍👏
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